This photograph of Arvind Kejriwal and Manish Sisodia was taken from some Railway Station Platform. Peacefully Indian Youth Icon Arvind Kejriwal and Team Anna Member Manish Sisodia sleeping.
This is a message for every one who is running after in life with on peaceful movement........hats of to arvind kejriwal and manish sisodhiya for whet they are doing for common people and india as a whole ....the real indian heros....
Arvind, Are you looking for sympathy or support? You may be a crusader but posting such self-righteous pictures smacks of ego and a desire to win unworthy praise.
Waste of energy by making such stupid comments. If you cant praise the efforts of person who are doing it for a common man, you dont have any right to make negative comments.
Its very easy to say big things but its very difficult to do it....I really respect and apprerciate your efforts Arvind ji and Manishji for actually doing for what govt has just been talking about for years....Hats of to you all...Aarti Prasad
Thanks to awaken Indians; no one can say in the words, what you did it was great. I wish you all the best in your future work. Also I would like to work with you, please do let me know how we can contact with you. My email id – sudhirkpathak@hotmail.com
i want to say this is perfect example for every Indian u leaving all ur Lugeries and ease u are fighting for common man.. believe me the respect u are gaining from the people of India and across the world it is a becoming a history ..every one is with u even corrupt ppl because they also want corrupt free india but the main problem is system this what u are fighting for !
To day I saw the programme 10th december . from the begining I thought that this programme is fabricated to threten annas team.Was worried how arvind Kejariwal would react.The way he delt with it was simply wounderful No trace of fear.Fearless confidance shows his devotion to the cause for which is fighting. Hats oof to you sir,How some people dare say that he is arrogant?Those who say this are either mad or stupid people.I have not seen a more plite person like him.He is Nuchiketa of modern days.I pray God to shower all blessings and good luck on him.
We the educated people of India have to create the awareness about Right to Information Act to the illiterate people. According to Deeru bhai Ambani: Some time uneducated people also can give good ideas than the educated. - DVRao, Advocate. For more details visit: www.dvrao.com
People who turned their head away from the laws as encoded in vedic system,are facing the life n land full of corruption.nation's ruling body is based on non vedic system, done by non divine demons.so one wud always suffer in this demo(no)cracy without finding the exit door from the torture chamber.nation's very anthem is not for Lord Krishn or Saptharishies who blessed this land, it is for Mountbatten!Funny that Nation's real birth name is not addressed as MahaBharath(Great Britha).people who looted the land are keeping the beautiful divine name as Great Britannia! does it awake sense to soulless people working for non vedic constitution.Making the constitution based on Maharshi Vedvyasa's thoughtful, SECULAR concerns on praja and prakruthi(environment) is the only solution for the corruption and pollution.
जबकि इसी देश में ढाई लाख किसानों की आत्महत्या हुई, 32 करोड़ से अधिक लोग भूखे पेट जिंदगी बसर कर रहे हैं. लेकिन इस पर क्यों नहीं कहा जा रहा कि सरकार फैसला नहीं ले पा रही है?
अगर भारत में वालमार्ट या टेस्को के आने से हमारे देश की अर्थव्यवस्था बेहतर हो सकती है तो इंग्लैंड या यूरोप की अर्थव्यवस्था क्यों मजबूत नहीं हो रही है, वहां तो वालमार्ट भी है और टेस्को भी है.
हमारे प्रधानमंत्री कहते हैं कि हमें अपने देश में 70 प्रतिशत किसानों को खेती में लगाकर नहीं रखना है. सरकार की नीति है कि किसानों को गांव से हटाकर बाजार में बैठा दें.
अमरीका में किसान लगभग खत्म हो गए हैं. वहां खेती करने वाले लोग एक प्रतिशत से भी कम रह गए हैं.
अगर सरकार की नीति को देखें तो पता चल जाएगा कि यह नीति विश्व बैंक की बनाई हुई है. विश्व बैंक ने 1999 में डेवेलपमेंट रिपोर्ट के नाम से इसे जारी किया था.
कॉरपोरेट कंट्रोल पॉलिसी
किसानों को खासी निराशा हाथ लगी है बारहवीं योजना के दस्तावेज को अगर देखें तो पता चल जाएगा कि हमारी सरकार भी ‘कॉरपॉरेट कंट्रोल पॉलिसी’ को लागू करने पर आमादा है.
इसमें भी कहा गया है कि देश की आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए खेती पर से लोगों का बोझ कम करना पड़ेगा.
हमारी त्रासदी यह है कि हम देश में अन्न रखने के लिए गोदाम तक नहीं बना पाए हैं. एक जून को भारत के पास 750 लाख टन अन्न का भंडार हो जाएगा.
अगर इसे दूसरे शब्दों में कहें तो कहा जा सकता है कि अगर अनाज की बोरियों को एक के उपर एक खड़ा कर दिया जाए तो हम चांद पर उस बोरियों के सहारे ही पहुंच सकते हैं. फिर भी डेढ़ लाख टन अनाज बचा रह जाएगा.
हमारे देश में अभी भी 32 करोड़ लोग हर दिन भूखे सोते हैं और सरकार के पास अनाज रखने के लिए जगह नहीं है, जबकि अनाज सड़ रहा है.
मेरे हिसाब से यह है ‘पॉलिसी पैरालिसिस’. एफडीआई को भारत आने की मंजूरी न देना ‘पॉलिसी पैरालाइसिस’ नहीं है
एक जून को भारत में 750 लाख टन अन्न का भंडार हो जाएगा, लेकिन गोदाम नहीं हैं भारत की त्रासदी है कि जब भी आम जनता को लाभ देने की बात होती है तो तरह-तरह के सवाल उठने लगते हैं और कहा जाता है कि सरकार नीति निर्धारण ही नहीं कर पा रही है.
लेकिन जब अमीरों को लाभ पहुंचाने की बात होती है तो नए तरह के शब्द गढ़ लिए जाते हैं. मैं एक-दो उदाहरण देकर कुछ बातें बताना चाहता हूं.
भारत किसान अगर बैंक से लोन लेकर वापस नहीं करता है तो उसे जेल में डाल दिया जाता है. लेकिन अगर अमीर आदमी किसी बैंक से कर्ज लेकर वापस नहीं करता तो उसे ‘नॉन पर्फार्मिंग एसेट्स’ कहा जाता है.
दोहरी नीतियां
इस तरह, एक काम के लिए गरीब किसानों को जहाँ जेल जाना पड़ता है, वहीं बड़े उद्योगपतियों को एक नई श्रेणी में शामिल करके अपना काम जारी रखने के लिए छोड़ दिया जाता है.
"हमारे सामने ‘फिस्कल डिफिसिट’ की बात होती है जबकि अमरीका की पूरी अर्थव्यवस्था ही घाटे में है, जिसे ‘डिफिसिट इकॉनोमी’ कहा जाता है. लेकिन अमरीका ने नोट छापना शुरू किया और इसे एक बेहतरीन शब्द ‘क्वांटेटिव इजिंग’ का नाम दे दिया" अब मैं दूसरा उदाहरण देता हूं. जब गरीबों को सरकार की तरफ से कुछ छूट दी जाती है तो उसे ‘सब्सिडी’ कहा जाता है, जबकि अमीरों को विभिन्न प्रकार की दी गई छूट ‘एफिशिएंसी इंवेस्टमेंट’ की श्रेणी में आती है.
हमारे यहां विभिन्न महकमों में यह बात उठने लगी है कि मनरेगा, खाद्य पदार्थ और खाद पर सब्सिडी मिलाकर देश में गरीबों और किसानों को बहुत छूट दी जा रही है.
अगर किसान के खाद, खाद्य पदार्थ और मनरेगा में मिले सभी पैसे को मिला दिया जाए तो कुल मिलाकर ये दो लाख पच्चीस हजार करोड़ के करीब होता है.
‘रेवेन्यू फॉरगॉन’
जबकि हर साल ‘रेवेन्यू फॉरगॉन’ के नाम पर अमीरों को पांच लाख 29 हजार करोड़ रुपए की छूट दी जाती है. लेकिन क्या किसी ने यह सवाल किया है कि अमीरों को यह छूट क्यों दी जा रही है?
भारत में गरीबों को कुछ भी दिए जाने को सीधे तौर पर सब्सिडी कहा जाता है जबकि अमीरों को मिलने वाली छूट का नाम बदल दिया जाता है.
प्रश्न उठता है कि क्या सरकार यह फैसला अकेले लेती है या फिर इसमें दूसरे लोग या संस्थाएं भी शामिल होती हैं?
सरकार के इस फैसले में दुनिया भर के सभी नीति निर्धारक तत्व शामिल होते हैं जिसमें डब्लूटीओ और तमाम तरह की बहुराष्ट्रीय संस्थाएं शामिल हैं.
किसानों को मिलने वाली छूट को सब्सिडी कहा जाता है यही सब मिलकर ग्लोबल सिस्टम बनाते हैं और नीति निर्धारित करते हैं.
अमरीकी अर्थव्यवस्था
हमारे सामने ‘फिस्कल डिफिसिट’ की बात होती है जबकि अमरीका की पूरी अर्थव्यवस्था ही घाटे में है, जिसे ‘डिफिसिट इकॉनोमी’ कहा जाता है.
लेकिन अमरीका ने नोट छापना शुरू किया और इसे एक बेहतरीन शब्द ‘क्वांटेटिव इजिंग’ का नाम दे दिया.
लेकिन समस्या यह है कि अगर सरकार से गरीबों को कुछ मिल जाए तो इसे ‘पॉलिसी पैरालिसिस’ का नाम दिया जाता है.
फिर प्रश्न उठता है कि ये बातें मीडिया में क्यों नहीं आती हैं? मीडिया में वही बातें आती हैं जो मोंटेक सिंह अहलूवालिया या कौशिक बसु या फिर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह बोलते हैं.
ऐसा प्रतीत होता है कि ऐसे लोगों के कहने पर ही ‘पॉलिसी पैरालिसिस’ जैसे शब्द गढ़े गए हैं.
वायदे से कम दिया
आखिर क्या कारण है कि ‘पॉलिसी पैरालिसिस’ जैसे शब्द गढ़ लिए गए हैं. इसका कारण यह है कि मनमोहन सिंह सरकार पिछले साल भर में बड़े कॉरपोरेट घरानों के लिए उतना कुछ नहीं कर पाई है, जितना शायद उसका करने की मंशा थी.
जब डेविड कैमरन भारत आए थे उसी समय खुदरा क्षेत्र में एफडीए के लिए देश को तैयार हो जाना चाहिए था. लेकिन लाख चाहने के बाद भी राजनीतिक मजबूरियों के चलते यहां खुदरा क्षेत्र में पूरी तरह एफडीआई नहीं लागू हो पाई.
इसी तरह बीमा नीति लागू नहीं हो पाई. ये बिना वजह नहीं है कि जब बड़े फैसले लागू नहीं किए जा सके तो हंगामा मचना शुरु हो गया कि सरकार कोई फैसला ही नहीं ले पाती है.
Brevo....Arvind...this is what is called as 'SACRIFICATION',this is not easy task. one can do it,who is dedicated to people....oe day, you will be milestone for india.
we raelly need leaders of such a great attitude....could our respectable prime minister or sonia gandhi do this for the welfare of our country....no way.....i salute you arvind sir...i considered you as the first citizen of india...as u deserves this.
This is a message for every one who is running after in life with on peaceful movement........hats of to arvind kejriwal and manish sisodhiya for whet they are doing for common people and india as a whole ....the real indian heros....
ReplyDeleteHats of to you arvind and manish. May God be with you always.
ReplyDeleteAdvocate Neelima Mysore Pune.
Arvind, Are you looking for sympathy or support? You may be a crusader but posting such self-righteous pictures smacks of ego and a desire to win unworthy praise.
ReplyDeleteWaste of energy by making such stupid comments. If you cant praise the efforts of person who are doing it for a common man, you dont have any right to make negative comments.
DeleteIts very easy to say big things but its very difficult to do it....I really respect and apprerciate your efforts Arvind ji and Manishji for actually doing for what govt has just been talking about for years....Hats of to you all...Aarti Prasad
ReplyDeleteawesome dedication, determination .....tremendously inspirational
ReplyDeleteThese are real life hero Mr. Arvind Kejriwal & Manish Sisodhiya...Hats of ..
ReplyDeleteDown to earth.Zenith of simplicity.Real Hero.
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteThanks to awaken Indians; no one can say in the words, what you did it was great. I wish you all the best in your future work. Also I would like to work with you, please do let me know how we can contact with you. My email id – sudhirkpathak@hotmail.com
ReplyDeletegiving inspiration to youth.....
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeletei want to say this is perfect example for every Indian u leaving all ur Lugeries and ease u are fighting for common man.. believe me the respect u are gaining from the people of India and across the world it is a becoming a history ..every one is with u even corrupt ppl because they also want corrupt free india but the main problem is system this what u are fighting for !
ReplyDeleteso great time u shown to the country ..
jai hind
best example of "Simple living & high thinking".. Kudos to you..
ReplyDeleteMy name is Poonam.I appreciate the works and dedication of Arvind kejriwal and also wants to be like him.
ReplyDeleteyou are real hero in real life...........
ReplyDeletejai hind
the real youth icon of awaken India-Mr.Arvind Kejriwal..
ReplyDeletesir i want to join your team by heartly plz give me one chance........ i do work for social......
ReplyDeleteTo day I saw the programme 10th december .
ReplyDeletefrom the begining I thought that this programme is fabricated to threten annas team.Was worried how arvind Kejariwal would react.The way he delt with it was simply wounderful No trace of fear.Fearless confidance shows his devotion to the cause for which is fighting. Hats oof to you sir,How some people dare say that he is arrogant?Those who say this are either mad or stupid people.I have not seen a more plite person like him.He is Nuchiketa of modern days.I pray God to shower all blessings and good luck on him.
We the educated people of India have to create the awareness about Right to Information Act to the illiterate people. According to Deeru bhai Ambani: Some time uneducated people also can give good ideas than the educated. - DVRao, Advocate. For more details visit: www.dvrao.com
ReplyDeletePeople who turned their head away from the laws as encoded in vedic system,are facing the life n land full of corruption.nation's ruling body is based on non vedic system, done by non divine demons.so one wud always suffer in this demo(no)cracy without finding the exit door from the torture chamber.nation's very anthem is not for Lord Krishn or Saptharishies who blessed this land, it is for Mountbatten!Funny that Nation's real birth name is not addressed as MahaBharath(Great Britha).people who looted the land are keeping the beautiful divine name as Great Britannia! does it awake sense to soulless people working for non vedic constitution.Making the constitution based on Maharshi Vedvyasa's thoughtful, SECULAR concerns on praja and prakruthi(environment) is the only solution for the corruption and pollution.
ReplyDeletesee the sacrifice for others...and this politicians are hopeless
ReplyDeleteबाहर निकालने की योजना
ReplyDeleteजबकि इसी देश में ढाई लाख किसानों की आत्महत्या हुई, 32 करोड़ से अधिक लोग भूखे पेट जिंदगी बसर कर रहे हैं. लेकिन इस पर क्यों नहीं कहा जा रहा कि सरकार फैसला नहीं ले पा रही है?
अगर भारत में वालमार्ट या टेस्को के आने से हमारे देश की अर्थव्यवस्था बेहतर हो सकती है तो इंग्लैंड या यूरोप की अर्थव्यवस्था क्यों मजबूत नहीं हो रही है, वहां तो वालमार्ट भी है और टेस्को भी है.
हमारे प्रधानमंत्री कहते हैं कि हमें अपने देश में 70 प्रतिशत किसानों को खेती में लगाकर नहीं रखना है. सरकार की नीति है कि किसानों को गांव से हटाकर बाजार में बैठा दें.
अमरीका में किसान लगभग खत्म हो गए हैं. वहां खेती करने वाले लोग एक प्रतिशत से भी कम रह गए हैं.
अगर सरकार की नीति को देखें तो पता चल जाएगा कि यह नीति विश्व बैंक की बनाई हुई है. विश्व बैंक ने 1999 में डेवेलपमेंट रिपोर्ट के नाम से इसे जारी किया था.
कॉरपोरेट कंट्रोल पॉलिसी
किसानों को खासी निराशा हाथ लगी है
बारहवीं योजना के दस्तावेज को अगर देखें तो पता चल जाएगा कि हमारी सरकार भी ‘कॉरपॉरेट कंट्रोल पॉलिसी’ को लागू करने पर आमादा है.
इसमें भी कहा गया है कि देश की आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए खेती पर से लोगों का बोझ कम करना पड़ेगा.
हमारी त्रासदी यह है कि हम देश में अन्न रखने के लिए गोदाम तक नहीं बना पाए हैं. एक जून को भारत के पास 750 लाख टन अन्न का भंडार हो जाएगा.
अगर इसे दूसरे शब्दों में कहें तो कहा जा सकता है कि अगर अनाज की बोरियों को एक के उपर एक खड़ा कर दिया जाए तो हम चांद पर उस बोरियों के सहारे ही पहुंच सकते हैं. फिर भी डेढ़ लाख टन अनाज बचा रह जाएगा.
हमारे देश में अभी भी 32 करोड़ लोग हर दिन भूखे सोते हैं और सरकार के पास अनाज रखने के लिए जगह नहीं है, जबकि अनाज सड़ रहा है.
मेरे हिसाब से यह है ‘पॉलिसी पैरालिसिस’. एफडीआई को भारत आने की मंजूरी न देना ‘पॉलिसी पैरालाइसिस’ नहीं है
एक जून को भारत में 750 लाख टन अन्न का भंडार हो जाएगा, लेकिन गोदाम नहीं हैं
ReplyDeleteभारत की त्रासदी है कि जब भी आम जनता को लाभ देने की बात होती है तो तरह-तरह के सवाल उठने लगते हैं और कहा जाता है कि सरकार नीति निर्धारण ही नहीं कर पा रही है.
लेकिन जब अमीरों को लाभ पहुंचाने की बात होती है तो नए तरह के शब्द गढ़ लिए जाते हैं. मैं एक-दो उदाहरण देकर कुछ बातें बताना चाहता हूं.
भारत
किसान अगर बैंक से लोन लेकर वापस नहीं करता है तो उसे जेल में डाल दिया जाता है. लेकिन अगर अमीर आदमी किसी बैंक से कर्ज लेकर वापस नहीं करता तो उसे ‘नॉन पर्फार्मिंग एसेट्स’ कहा जाता है.
दोहरी नीतियां
इस तरह, एक काम के लिए गरीब किसानों को जहाँ जेल जाना पड़ता है, वहीं बड़े उद्योगपतियों को एक नई श्रेणी में शामिल करके अपना काम जारी रखने के लिए छोड़ दिया जाता है.
"हमारे सामने ‘फिस्कल डिफिसिट’ की बात होती है जबकि अमरीका की पूरी अर्थव्यवस्था ही घाटे में है, जिसे ‘डिफिसिट इकॉनोमी’ कहा जाता है. लेकिन अमरीका ने नोट छापना शुरू किया और इसे एक बेहतरीन शब्द ‘क्वांटेटिव इजिंग’ का नाम दे दिया"
अब मैं दूसरा उदाहरण देता हूं. जब गरीबों को सरकार की तरफ से कुछ छूट दी जाती है तो उसे ‘सब्सिडी’ कहा जाता है, जबकि अमीरों को विभिन्न प्रकार की दी गई छूट ‘एफिशिएंसी इंवेस्टमेंट’ की श्रेणी में आती है.
हमारे यहां विभिन्न महकमों में यह बात उठने लगी है कि मनरेगा, खाद्य पदार्थ और खाद पर सब्सिडी मिलाकर देश में गरीबों और किसानों को बहुत छूट दी जा रही है.
अगर किसान के खाद, खाद्य पदार्थ और मनरेगा में मिले सभी पैसे को मिला दिया जाए तो कुल मिलाकर ये दो लाख पच्चीस हजार करोड़ के करीब होता है.
‘रेवेन्यू फॉरगॉन’
जबकि हर साल ‘रेवेन्यू फॉरगॉन’ के नाम पर अमीरों को पांच लाख 29 हजार करोड़ रुपए की छूट दी जाती है. लेकिन क्या किसी ने यह सवाल किया है कि अमीरों को यह छूट क्यों दी जा रही है?
भारत में गरीबों को कुछ भी दिए जाने को सीधे तौर पर सब्सिडी कहा जाता है जबकि अमीरों को मिलने वाली छूट का नाम बदल दिया जाता है.
प्रश्न उठता है कि क्या सरकार यह फैसला अकेले लेती है या फिर इसमें दूसरे लोग या संस्थाएं भी शामिल होती हैं?
सरकार के इस फैसले में दुनिया भर के सभी नीति निर्धारक तत्व शामिल होते हैं जिसमें डब्लूटीओ और तमाम तरह की बहुराष्ट्रीय संस्थाएं शामिल हैं.
किसानों को मिलने वाली छूट को सब्सिडी कहा जाता है
यही सब मिलकर ग्लोबल सिस्टम बनाते हैं और नीति निर्धारित करते हैं.
अमरीकी अर्थव्यवस्था
हमारे सामने ‘फिस्कल डिफिसिट’ की बात होती है जबकि अमरीका की पूरी अर्थव्यवस्था ही घाटे में है, जिसे ‘डिफिसिट इकॉनोमी’ कहा जाता है.
लेकिन अमरीका ने नोट छापना शुरू किया और इसे एक बेहतरीन शब्द ‘क्वांटेटिव इजिंग’ का नाम दे दिया.
लेकिन समस्या यह है कि अगर सरकार से गरीबों को कुछ मिल जाए तो इसे ‘पॉलिसी पैरालिसिस’ का नाम दिया जाता है.
फिर प्रश्न उठता है कि ये बातें मीडिया में क्यों नहीं आती हैं? मीडिया में वही बातें आती हैं जो मोंटेक सिंह अहलूवालिया या कौशिक बसु या फिर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह बोलते हैं.
ऐसा प्रतीत होता है कि ऐसे लोगों के कहने पर ही ‘पॉलिसी पैरालिसिस’ जैसे शब्द गढ़े गए हैं.
वायदे से कम दिया
आखिर क्या कारण है कि ‘पॉलिसी पैरालिसिस’ जैसे शब्द गढ़ लिए गए हैं. इसका कारण यह है कि मनमोहन सिंह सरकार पिछले साल भर में बड़े कॉरपोरेट घरानों के लिए उतना कुछ नहीं कर पाई है, जितना शायद उसका करने की मंशा थी.
जब डेविड कैमरन भारत आए थे उसी समय खुदरा क्षेत्र में एफडीए के लिए देश को तैयार हो जाना चाहिए था. लेकिन लाख चाहने के बाद भी राजनीतिक मजबूरियों के चलते यहां खुदरा क्षेत्र में पूरी तरह एफडीआई नहीं लागू हो पाई.
इसी तरह बीमा नीति लागू नहीं हो पाई. ये बिना वजह नहीं है कि जब बड़े फैसले लागू नहीं किए जा सके तो हंगामा मचना शुरु हो गया कि सरकार कोई फैसला ही नहीं ले पाती है.
we are very proud for Arvind & Manish
ReplyDeleteBrevo....Arvind...this is what is called as 'SACRIFICATION',this is not easy task. one can do it,who is dedicated to people....oe day, you will be milestone for india.
ReplyDeletewe raelly need leaders of such a great attitude....could our respectable prime minister or sonia gandhi do this for the welfare of our country....no way.....i salute you arvind sir...i considered you as the first citizen of india...as u deserves this.
ReplyDeletehappy belated birthday Arvind sir ....may god give you tremendous power ...to fight against curruption and currupted leaders
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